बाबा भीलट देव भोलेनाथ के वरदानी पुत्रो में से एक वरदानी अवतार भी है।जैसे भगवान राम ने राक्षसो एवम राक्षस प्रवति का नाश करने के लिये जन्म लिया उसी तरह बाबा भिलट देव ने उस ज़माने के तांत्रिको और जादूगरों का नाश करने के लिए अवतार लिया।प्यारे भक्तजनों बाबा भिलट देव का जन्म आज से लगभग ७००-८०० वर्ष पूर्व वर्तमान में हरदा जिले के छोटे से कसबे में रोलगाव में हुआ था।बाबा की माता का नाम मेदा बाई और पिता का नाम एलण था उस ज़माने में राणाओ का अपना अपना एरिया था तथा एलण राना का पूर्व एरिया रोलगाव तक था।चुकी एलन राना की शादी होने के कइ वर्षो तक माता मेटा को कोई संतान नही थी इसलिए गावके लोगो द्वारा बाज्हपान का ताना सुनते सुनते दोनों दम्पति दे रोलगाव छोड़ने का मन बना लिया।दोनों दम्पति बाबा भोलेनाथ के परम भक्त थे कुछ गाव में अची महिलाओ के द्वारा यह कहा गया की मेदा तू तो माता पार्वती एवम् भोलेनाथ की बड़ी अची सेवा,पूजा और भक्ति करती हो क्यों न एक बार ब्लोलेनाथ से प्रथना करने चली जा।सुझाव माता मेदा के मन को अच लगा और वे दोनों दम्पति बाबा भोलेनाथ के द्वार पर पुत्र कामना लेकर पहुचे।
भोलेनाथ के दरबार में पहुचकर इन्होने अपने उपर बिट रही साडी व्यथा कथा शंकरजी से कही उस समय माता पार्वती को चार माह का गर्भ था माता की साडी व्यथा सुनने के बाद शंकरजी को माता मेदा पर बड़ी दया आयी और पारवती माता ने भोलेनाथ से कहा हे नाथ हम तो वीराने में रहते है हम अपना परिवार बड़ा कर संसार में कोनसा बड़ा कम करने वाले है तब भागवान ने कहा जैसा आप उचित समझे उसी समय माता पार्वती को जो चार माह का गर्भ था उसे माता सीता के गर्भ में प्रवेश कर दिया गया जिसे आज की भाषा में (ट्रांसप्लांट कहते है).कुछ दिनों बाद बाबा की कृपा से माता मेदा ने के सुंदर पुत्र को जन्म दिया बाद में जिसका नाम भिलट देव के नाम से प्रसिद्ध हुआ।जिस समय वरदान में पुत्र दिया उस समय भागवान शिव ने माता मेदा को एक वचन दिया।
बाबा भोलेनाथ ने माता मेदा को कहा जैसा दिया है वैसा वापस लेने आऊंगा अगर मेदा तूने मुझे पहचान लिया तो मै वापस नही आऊंगा और यदि नही पहचाना तो इसे अपने साथ ले जाऊंगा।इधर माता पुत्र की खुसी मई इतनी मस्त हो गयी की अपना दिया वचन और दुनिया की सारी चिंताए छोड़ पुत्र मै पुत्रमय हो गई तथा माता मेदा घर का कामकाज करने के लिए माचक नदी पर पानी लेने गई और ईधर बाबा भोलेनाथ अपने वचन के अनुसार माता मेदा के द्वार पर पुहुचे और अलक जगा कर एक जगह पर बैठ गए और भोलेनाथ ने ढूध माँगा तब माता नदी से आ चुकी थी माता ने कहा आज ढूध नही है और मैंने सारे दुध की छाछ बना ली है कल आना माता मेदा ने बाबा को नही पहचाना तब बाबा ने मेरे वचन के अनुसार मेदा तूने मुझे नही पहचाना तब बाबा भोलेनाथ बालक को छोली मै से उठाकर लेकर चले गये अपने गले का नाग बना चल दिए।तभी से बाबा भिलट की नाग रूप मै पूजा होने लगी इधर बालक को उठाकर भोलेनाथ चोरागढ़ ले गये (वर्तमान मै) पंचमढ़ी.वहा बाबा भोलेनाथ ने बाबा भिअल्ट देव का पालन पोषण कर समस्त प्रकार की विधाओ मै निपुण कर दिया और माता मेदा को कह दिया की तुम्हारा पुत्र युवावस्था मै मिलेगा।
भोलेनाथ ने बाबा बिलट से कहा जिस कम के लिए आपका अवतार हुआ वह समय अब आ गया है अब तुम वह पर जाओ जहा के तांत्रिको और जादूगरों ने सारी दुनिया मै अपना आतंक मचा रखा है।तब भिलट देव ने कहा की मुझे वहा अकेले जाना पड़ेगा तब बाबा भोलेनाथ ने कहा आपके साथ एक और वरदानी पुत्र भेरवानी भी जायेंगे उसके वह दोनों वहा से काथुर बंगाल(वर्तमान मई कामख्या देवी मंदिर के आसपास का घाना जंगल)वहा जाकर अपनी युद्ध विद्याओ से वहा के तांत्रिको और जादूगरों का सफाया कर वहा के राजा की कन्या से विवाह करके सकुशल बाबा भोलेनाथ के पास पहुज गये।
तब शंकरजी ने प्रसन होकर कहा अपनी माता-पिता के पास जाओ इसके बाद बाद बाबा भिलट देव अपने माता-पिता के पास चले गये तथा पुत्र को देखकर माता मेदा के आचल से दुध की धारा बहने लगी और माता-पिता एवम पुत्र का मिलन हुआ.इसके बाद लम्बे समय तक बाबा भिलट देव ने माता-पिता के साथ समय व्यतित किया इसके बाद भिलट देव के पिता को नागलवाड़ी का एरिया मिला और उन्होंने बाबा भिलट देव को कहा की आप नागलवाड़ी जाकर कहा के लोगो और दिनदुखियो की सेवा करो।
अपने पिता के वचन अनुसार बाबा भिलट देव ने नागलवाड़ी के लोगो की सेवा की ।धीरे -धीरे बाबा भिलट देव की महिमा आस-पास के इलाको में बढने लगी तथा इसके बाद एक दिन बाबा के दरबार में एक किन्नर आयी और उसने कहा बाबा मुझे एक संतान चाइये तब बाबा ने कहा आप किन्नर हो आपको गर्भ कैसे हो सकता है तब किन्नर जिद करने लगा तभी बाबा के उसे तथास्तु कह दिया और उस किन्नर को नो घडी मै नो माह का गर्भ हो गया।कोई कुदरती मार्ग नही होने के कारण उस किन्नर की मोत हो गयी तथा उस की समाधी आज भी नागलवाड़ी मै उपस्थित है।तभी बाबा ने श्राप दिया की तुम्हारी जाती का कोई भी किन्नर नागलवाड़ी में रात्रि विश्राम के लिए नही रुख सकता है।इसी तरह बाबा ने कई चमत्कार किए और अपने भक्तो की मनोकामनाए पूर्ण की।इसके बाद बाबा ने नागलवाड़ी शिकार धाम पर समाधी ली।एक बार नागलवाड़ी शिखर धाम आईये और बाबा के सन्मुख अपनी मनोकामना बाबा को अवश्य कहे।बाबा आपकी मनोकामना जरुर पूर्ण करेगे।
भोलेनाथ के दरबार में पहुचकर इन्होने अपने उपर बिट रही साडी व्यथा कथा शंकरजी से कही उस समय माता पार्वती को चार माह का गर्भ था माता की साडी व्यथा सुनने के बाद शंकरजी को माता मेदा पर बड़ी दया आयी और पारवती माता ने भोलेनाथ से कहा हे नाथ हम तो वीराने में रहते है हम अपना परिवार बड़ा कर संसार में कोनसा बड़ा कम करने वाले है तब भागवान ने कहा जैसा आप उचित समझे उसी समय माता पार्वती को जो चार माह का गर्भ था उसे माता सीता के गर्भ में प्रवेश कर दिया गया जिसे आज की भाषा में (ट्रांसप्लांट कहते है).कुछ दिनों बाद बाबा की कृपा से माता मेदा ने के सुंदर पुत्र को जन्म दिया बाद में जिसका नाम भिलट देव के नाम से प्रसिद्ध हुआ।जिस समय वरदान में पुत्र दिया उस समय भागवान शिव ने माता मेदा को एक वचन दिया।
बाबा भोलेनाथ ने माता मेदा को कहा जैसा दिया है वैसा वापस लेने आऊंगा अगर मेदा तूने मुझे पहचान लिया तो मै वापस नही आऊंगा और यदि नही पहचाना तो इसे अपने साथ ले जाऊंगा।इधर माता पुत्र की खुसी मई इतनी मस्त हो गयी की अपना दिया वचन और दुनिया की सारी चिंताए छोड़ पुत्र मै पुत्रमय हो गई तथा माता मेदा घर का कामकाज करने के लिए माचक नदी पर पानी लेने गई और ईधर बाबा भोलेनाथ अपने वचन के अनुसार माता मेदा के द्वार पर पुहुचे और अलक जगा कर एक जगह पर बैठ गए और भोलेनाथ ने ढूध माँगा तब माता नदी से आ चुकी थी माता ने कहा आज ढूध नही है और मैंने सारे दुध की छाछ बना ली है कल आना माता मेदा ने बाबा को नही पहचाना तब बाबा ने मेरे वचन के अनुसार मेदा तूने मुझे नही पहचाना तब बाबा भोलेनाथ बालक को छोली मै से उठाकर लेकर चले गये अपने गले का नाग बना चल दिए।तभी से बाबा भिलट की नाग रूप मै पूजा होने लगी इधर बालक को उठाकर भोलेनाथ चोरागढ़ ले गये (वर्तमान मै) पंचमढ़ी.वहा बाबा भोलेनाथ ने बाबा भिअल्ट देव का पालन पोषण कर समस्त प्रकार की विधाओ मै निपुण कर दिया और माता मेदा को कह दिया की तुम्हारा पुत्र युवावस्था मै मिलेगा।
भोलेनाथ ने बाबा बिलट से कहा जिस कम के लिए आपका अवतार हुआ वह समय अब आ गया है अब तुम वह पर जाओ जहा के तांत्रिको और जादूगरों ने सारी दुनिया मै अपना आतंक मचा रखा है।तब भिलट देव ने कहा की मुझे वहा अकेले जाना पड़ेगा तब बाबा भोलेनाथ ने कहा आपके साथ एक और वरदानी पुत्र भेरवानी भी जायेंगे उसके वह दोनों वहा से काथुर बंगाल(वर्तमान मई कामख्या देवी मंदिर के आसपास का घाना जंगल)वहा जाकर अपनी युद्ध विद्याओ से वहा के तांत्रिको और जादूगरों का सफाया कर वहा के राजा की कन्या से विवाह करके सकुशल बाबा भोलेनाथ के पास पहुज गये।
तब शंकरजी ने प्रसन होकर कहा अपनी माता-पिता के पास जाओ इसके बाद बाद बाबा भिलट देव अपने माता-पिता के पास चले गये तथा पुत्र को देखकर माता मेदा के आचल से दुध की धारा बहने लगी और माता-पिता एवम पुत्र का मिलन हुआ.इसके बाद लम्बे समय तक बाबा भिलट देव ने माता-पिता के साथ समय व्यतित किया इसके बाद भिलट देव के पिता को नागलवाड़ी का एरिया मिला और उन्होंने बाबा भिलट देव को कहा की आप नागलवाड़ी जाकर कहा के लोगो और दिनदुखियो की सेवा करो।
अपने पिता के वचन अनुसार बाबा भिलट देव ने नागलवाड़ी के लोगो की सेवा की ।धीरे -धीरे बाबा भिलट देव की महिमा आस-पास के इलाको में बढने लगी तथा इसके बाद एक दिन बाबा के दरबार में एक किन्नर आयी और उसने कहा बाबा मुझे एक संतान चाइये तब बाबा ने कहा आप किन्नर हो आपको गर्भ कैसे हो सकता है तब किन्नर जिद करने लगा तभी बाबा के उसे तथास्तु कह दिया और उस किन्नर को नो घडी मै नो माह का गर्भ हो गया।कोई कुदरती मार्ग नही होने के कारण उस किन्नर की मोत हो गयी तथा उस की समाधी आज भी नागलवाड़ी मै उपस्थित है।तभी बाबा ने श्राप दिया की तुम्हारी जाती का कोई भी किन्नर नागलवाड़ी में रात्रि विश्राम के लिए नही रुख सकता है।इसी तरह बाबा ने कई चमत्कार किए और अपने भक्तो की मनोकामनाए पूर्ण की।इसके बाद बाबा ने नागलवाड़ी शिकार धाम पर समाधी ली।एक बार नागलवाड़ी शिखर धाम आईये और बाबा के सन्मुख अपनी मनोकामना बाबा को अवश्य कहे।बाबा आपकी मनोकामना जरुर पूर्ण करेगे।